रूस से युद्ध में जेलेंस्की के लिए नई मुश्किलें इंतजार में है। आने वाले दिनों में यूक्रेन के सैनिक हथियारों की कमी से जूझते दिखने वाले हैं। अब तक पश्चिमी देशों के हथियारों के दम पर रूस का मुकाबला कर रहे जेलेंस्कि के लिए आने वाला समय चुनौतियों से भरा होने वाला है। क्योंकि युद्ध में रूस के खिलाफ यूक्रेन को हथियार देने को लेकर पश्चिमी देशों में फूट नजर आने लगी है। स्विट्जरलैंड ने यूरोपिय देशों के दबाव के बाद भी अब यूक्रेन को हथियार देने से इनकार कर रहा है। कहा जाए तो ज़ेलेंस्की को मिलने वाले मगदद को लेकर अब पश्चिमी देशों में फूट पड़ गई है।
बताया जा रहा है कि स्विटजरलैंड ने यूक्रेन को अपने हथियार देने से मना किया। इसके साथ ही जर्मनी और स्पेन को भी आगाह किया है। दरअसल जंग में स्विट्ज़रलैंड के किसी के भी पक्ष में खड़ा नहीं होना चाहता और यही उसके देश की पॉलिसी है। इसीलिए उसने कई बार यूक्रेन की मदद करने से इनकार कर चुका है। अब वो जर्मनी और स्पेन को भी सतर्क कर रहा है।
हालांकि इससे पहले स्विट्ज़रलैंड रूस के हमले की आलोचना कर चुका है। मॉस्को पर लगाए गए पश्चिमी प्रतिबंधों में भी शामिल है। स्विट्जरलैंड भले ही नाटो का सदस्य ना हो, लेकिन पार्टनरशिप फॉर पीस कार्यक्रम के तहत नाटो का सहयोग करता है। इसके अलावा स्विट्जरलैंड संयुक्त राष्ट्र का भी सदस्य है।
हालांकि, जर्मनी अपने सबसे घातक माने जाने वाले लेपर्ड टैंक देने पर मुहर लगाई है। जिसके बाद यूक्रेन को 14 लेपर्ड 2 टैंक दिए जाएंगे। स्पेन भी यूक्रेन को 6 लेपर्ड 2 टैंक दे रहा है। वहीं अगर स्विट्ज़रलैंड की बात जर्मनी ने मान लिया तो यूक्रेन की मुश्किलें बढ़ जाएगी। जर्मनी के इनकार के बाद कोई भी देश यूक्रेन को लेपर्ड टैंक नहीं दे पाएगा, क्योंकि लेपर्ड 2 टैंक बनाने वाला मूल देश जर्मनी ही है।
एक दावे के मुताबिक यूक्रेन को कुल 28 देशों ने हथियारों की मदद दी है। इसमें सबसे बड़ा योगदान अमेरिका का रहा है। स्विटजरलैंड की सरकार भी यूक्रेन में मानवीय सहायता के तौर पर लाखों डॉलर की सहायता दे चुका है। वहीं स्पेन और जर्मनी भी हथियारों के साथ साथ मानवीय सहायता के लिए लगातार मदद कर रहे हैं। इसके बावजूद जर्मनी खुलकर मदद नहीं कर रहा है।
जर्मनी युद्ध के शुरू से ही यूक्रेन को तुरंत हथियार मुहैया कराने से बच रहा है। यूक्रेन ने जर्मनी पर पहले आरोप भी लगाया था कि ऐसा करके वह अप्रत्यक्ष रूप से रूस की मदद कर रहा है। इसके बाद ही जर्मनी ने धीरे धीरे यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति की शुरू की थी। जर्मनी के इस ढुलमुल रवैये की पीछे उसकी ही नीतियां हैं। इन सबके बीच अगर स्विटजरलैंड की तटस्थ नीति स्पेन और जर्मनी भी मानने लगेंगे तो यूक्रेन की मदद करने वाले अन्य देश भी पीछे हट सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो यूक्रेन युद्ध में रूस का सामना नहीं कर पाएगा और वो युद्ध हार जाएगा।