पश्चिम एशिया को चीन से दूर रखने के लिए अमेरिका ने चीन वाली ही चाल चल दी। चीन अपना Infrastructure Project, BRI यानी Belt & Road Initiative पश्चिम एशिया तक फैलाने में लगा है। इसलिए उधर से अमेरिका ने भी पश्चिम एशिया के देशों को आपस में रेल नेटवर्क से जोड़ने का ऑफ़र दे दिया। अहम बात ये है कि अपने इस प्लैन के लिए अमेरिका भारत की मदद लेना चाहता है। जिसके लिए अमेरिका के NSA ने सऊदी अरब में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मुलाक़ात की। इसके बाद व्हाइट हाउस ने इस मामले पर बयान जारी किया। उसमें कहा कि मीटिंग का मक़सद था कि कैसे पश्चिम एशिया को भारत और बाक़ी दुनिया से जोड़ा जाए।
मीटिंग में अमेरिका के उस प्लैन पर चर्चा हुई जिसके तहत वो पश्चिम एशिया में रेल, रोड और समुद्र के रास्ते कनेक्टिविटी बढ़ाना चाहता है। वो पश्चिम एशिया के देशों को आपस में रेल के ज़रिए लिंक करना चाहता है। अमेरिका का प्लैन पश्चिम एशिया को भारत से जोड़ने का भी है। इसके लिए वो शिपिंग लेनों को ज़रिया बनाना चाहता है।
अमेरिका की न्यूज़ वेबसाइट Axios ने भी बताया कि अमेरिका इस प्रॉजेक्ट को किसी भी क़ीमत पर पूरा करना चाहता है। अमेरिका चीन की ही चाल से चीन को मात देना चाहता है। क्योंकि चीन भी अपने BRI प्रॉजेक्ट के ज़रिए दूसरे देशों में इंफ़्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में लगा है। पश्चिम एशिया BRI का अहम हिस्सा है। लेकिन BRI की आड़ में चीन पश्चिम एशिया में अपनी पैठ बनाता जा रहा है। पश्चिम एशिया दुनिया के नक़्शे का वो हिस्सा है, जिस पर अमेरिका और चीन, दोनों अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहते, क्योंकि पश्चिम एशिया की लोकेशन बहुत अहम है। वो एशिया, यूरोप और अफ़्रीका जैसे तीन बड़े महाद्वीपों के जंक्शन पर मौजूद है।
दूसरी बात ये कि पश्चिम एशिया की ज़मीन के अन्दर तेल कूट-कूटकर भरा है। उस पश्चिम एशिया में हमेशा अमेरिका का दबदबा रहा है। सऊदी अरब और इज़राइल जैसे बड़े और ताक़तवर देश अमेरिका के खेमे में रहे हैं। 2000 के दशक में इराक़ पर हमला करके अमेरिका ने उसे कमज़ोर कर दिया। यानी इस इलाक़े में इकलौता ईरान ही अमेरिका का बड़ा दुश्मन है। लेकिन अब पश्चिम एशिया की पिक्चर बदल रही है। बीते कुछ साल में अमेरिका का दुश्मन चीन पश्चिम एशिया में अपने पैर पसारता जा रहा है।
उसके लिए चीन ने दुनिया के सबसे बड़े Infrastructure Programme अपने Belt and Road Initiative को ज़रिया बनाया है। जो कि सड़कों और समुद्री रास्ते का जाल है। जो चीन से होते हुए पश्चिम एशिया तक भी जाएगा। इस प्रॉजेक्ट के तहत चीन पश्चिम एशिया के देशों में निवेश के नाम पर पानी की तरह पैसा बहा रहा है। उसके बदले में मदद पाने वाले देश सभी मंच पर चीन की हाँ में हाँ मिलाने में जुटे हैं।
ये बात अमेरिका के लिए ख़तरे की घंटी है। क्योंकि अगर पश्चिम एशिया चीन के पाले में गया तो अमेरिका कहीं का नहीं रहेगा। रूस से लेकर ईरान और उत्तर कोरिया तक अमेरिका के जितने भी दुश्मन हैं, वो सब पहले ही चीन के साथ खड़े हैं। चीन इन सबका दोस्त है। इस पर अगर पश्चिम एशिया भी अमेरिका के हाथ से निकला तो अमेरिका के साथी बस उंगलियों में गिनने लायक बचेंगे।
बीते कुछ वक़्त से चीन पश्चिम एशिया में मौजूद अमेरिका के दोस्तों पर अपनी नज़र गड़ाए बैठा है। इनमें सबसे ऊपर सऊदी अरब है। जिससे वो तेल ख़रीदता है और हथियार बेचता है। ईरान पहले ही चीन का अच्छा दोस्त है। अभी दो महीने पहले मार्च में तो वो अमेरिका के दुश्मन ईरान की सऊदी अरब से दोस्ती भी करा चुका है। इसलिए अमेरिका परेशान है। अब वो भी बिल्कुल चीन के BRI प्रॉजेक्ट की तर्ज़ पर पश्चिम एशिया को रोड, रेल और समन्दर के रास्ते जोड़ने की प्लैनिंग कर रहा है। ये ऐसा प्रॉजेक्ट होगा, जिसके आगे चीन का लाखों करोड़ डॉलर का BRI प्रॉजेक्ट भी छोटा पड़ जाएगा।
अमेरिका की कोशिश ये है कि वो पश्चिम एशिया के देशों को दिखा सके कि अगर चीन उन्हें विकास के सपने दिखा रहा है, तो उन्हें विकसित करने का रोडमैप अमेरिका के भी पास है। हालांकि, चीन बस पश्चिम एशिया पर ही नहीं रुका है। वो हाल ही तक अमेरिका के साथी रहे अफ़ग़ानिस्तान को भी अपने प्लैन में शामिल करने की फ़िराक़ में है। इसके लिए दो दिन पहले चीन के विदेश मंत्री ने इस्लामाबाद में पाकिस्तान के विदेश मंत्री से मुलाक़ात की। उसके बाद ऐलान कर दिया कि CPEC यानी China-Pakistan Economic Corridor को अफ़ग़ानिस्तान तक बढ़ाया जाएगा।
CPEC, BRI का ही हिस्सा है। जो चीन के शिनजियांग प्रांत से शुरू होकर पाकिस्तान के बलूचिस्तान के ग्वादर बन्दरगाह तक जाता है। दो साल पहले तक अफ़ग़ानिस्तान अमेरिका के साथ था। लेकिन वहाँ तालिबान के क़ब्ज़े के बाद चीन उसे अपने पाले में लाने में जुटा है।