शाम 6 बजकर 55 मिनट पर ओडिशा के बालेश्वर जिले में बाहानगा स्टेशन के पास से हावड़ा शालीमार एक्सप्रेस गुजर रही थी। तभी ट्रेन डिरेल हो गई उसका एक हिस्सा लूप लाइन पर खड़ी मालगाड़ी से टकराया। और दूसरा हिस्सा दूसरी तरफ आ रही पैसेंजर ट्रेन से टकराया। इसका आगे का हिस्सा कोरोमंडल एक्सप्रेस का डिटेल होने के बाद मालगाड़ी से टकराया। हादसे के बाद पूरे इलाके में चीखों, सिस्कियों और आहों के सिवा कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। खून और मदद को पुकारती आवाज़ों के सिवा कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। अंधेरे में अपनों की तलाश शुरू हो गई थी।
ट्रैक के अंदर बाहर हर कहीं खून ही खून दिखाई दे रहा था। इस हादसे में अब तक 288 से ज़्यादा लोगों की मौत का दावा किया जा रहा है। कई आखों को अब भी अपनों की तलाश है। एक उम्मीद है, एक आस है कि शायद इस मौत की लंबी लिस्ट में उनका कोई अपना नहीं होगा। घर का चिराग सलामत होगा। लाशों के ढेर के नीचे उनका कोई करीबी नहीं दबा होगा। तो कोई ऐसा भी है जिसके लिए ये सफर उसकी ज़िंदगी का आखिरी सफर बन गया। घर का चिराग बुझ गया, बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया। परिवार की आखिरी उम्मीद का पंख टूट गया।
मोर्चरी में रखे शवों में एक शव वो भी था, जो घर पर अकेला था। जिसकी कमाई के भरोसे परिवार ज़िंदा था। जो अपनी रोज़ी के लिए ही इस सफर पर निकला था। लेकिन ये सफर उसकी ज़िंदगी का आखिरी सफर बन गया और परिवार ने अपना बेटा खो दिया। कल शाम को चेन्नई काम को जाने के लिए वो घर से निकला था। रात 9 बजे उसके परिवार को सूचना मिली की ट्रेन पलट गई। सुबह 5 बजे उसकी लाश मिली, फोटो से उसकी पहचान हुई।
हादसे के बाद मौत के आंकड़े डराने वाले हैं। इसी ट्रेन में कोई ऐसा भी था जिसके सितारे बुलंद थे। जो मौत को मात देकर लौटा था। जो खुद को उस हादसे में सबसे खुशनसीब बता रहा था। पूर्वी मेदिनीपुर जिले के सुब्रत पाल अपने परिवार के सदस्यों के साथ चेन्नई जा रहे थे। हादसे के बाद घर वालों को उनके लौटने की उम्मीद नहीं थी लेकिन सुब्रत ज़िंदगी की जंग जीत गए। हादसे के बाद से लगातार हर घंटे मौत के आंकड़ों के ग्राफ को दिखाती एक बुरी खबर सामने आ रही है। घायलों के बेहतर इलाज के लिए डॉक्टर की एक बड़ी टीम ओडिशा पहुंच चुकी है।