पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान वो डूबती कश्ती बन चुके हैं। जिससे पार लगने की उम्मीद अब किसी को नहीं है। यही वजह है कि हर कोई उसके डूबने से पहले कश्ती छोड़ देना चाहता है। इमरान खान के बुरे दिन क्या आए अपनो ने भी उनसे कन्नी काट ली। उनका साथ छोड़ने लगे। उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ के नेता लगातार इस्तीफ़ा दे रहे हैं। इस फ़ेहरिस्त में पीटीआई के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री फवाद चौधरी और जय प्रकाश भी हैं। जिन्होंने पीटीआई छोड़ने का ऐलान कर दिया था। इसके साथ ही उन्होंने कराची में मीडिया से रूबरू होते हुए, इमरान की गिरफ़्तारी के दौरान हुई हिंसा की निंदा की थी।
फवाद चौधरी ने कहा कि 9 मई को शांतिपूर्ण विरोध के नाम पर जो हिंसा हुई। उससे मैं बहुत दुखी हूं। उस दिन प्रदर्शन के नाम पर हमले हुए। जिसमें सेना को निशाना बनाया गया। इस घटना के बाद से मैं पाकिस्तान के लिए रो रहा हूं। पार्टी छोड़ने को लेकर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि उन पर पीटीआई छोड़ने का दबाव नहीं था। इससे पहले भी कई पीटीआई नेता पार्टी छोड़ने का ऐलान कर चुके हैं। किसी ने 9 मई को हिंसा के विरोध में इमरान की पार्टी से इस्तीफा दिया। तो किसी ने सेना के अपमान को इस्तीफ़े की वजह बताया। तो कोई सरकार के ख़िलाफ़ खड़े होने को गलत करार दे रहा है।
लेकिन असल में 9 मई को इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी के बाद पूरे पाकिस्तान में आगज़नी और तोड़फोड़ की जो घटनाएं अंजाम दी गई। जिनमें जिन्ना हाउस, आर्मी हेडक्वार्टर और ISI हेडक्वार्टर को जमकर निशाना बनाया गया। आरोप है कि ये हमले PTI कार्यकर्ताओं ने अंजाम दिए। जिसके बाद हिंसा में शामिल कई लोगों को गिरफ्तार किया गया और बाकियों पर ऐक्शन की तैयारी है। जिसके बाद सेना और सरकार का दबाव बढ़ता देख इमरान की पार्टी से किनारा करना ही सबने सही समझा।
यही वजह है कि तहरीक ए इंसाफ़ छोड़ने वाले नेताओं में सांसद से लेकर पूर्व मंत्री तक शामिल हैं। इतना ही नहीं इमरान के क्लाइमेट चेंज पर सलाहकार मलिक अमीन असलम ने भी पीटीआई से इस्तीफा दे दिया है। असलम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि मुल्क को तोड़ने वाले एजेंडे के साथ चलना नामुमकिन है। मलिक PTI वर्किंग कमेटी के चेयरमैन थे। इसके अलावा महमूद मौलवी, आमिर कियानी, करीम बक्स गबोल और संजय गंगवानी ने भी पीटीआई छोड़ने का ऐलान किया है।
अब पीटीआई नेता चाहे जो दलील दे लेकिन किसी ने सही कहा है कि सुख के सब साथी, दुख का ना कोई, ऐसा ही कुछ इमरान के साथ भी हो रहा। इमरान की मुसीबतें बढ़ती देख कोई उनके साथ या उनकी पार्टी के साथ राबता नहीं रखना चाहता। क्योंकि पाकिस्तान का सियासी इतिहास इस बात का गवाह है, कि वहां जिस हुक्मरान ने सेना से बग़ावत की उसका हश्र बुरा हुआ है