पटना हाई कोर्ट के फैसले के बाद बिहार सरकार को बड़ा झटका लगा है। बिहार सरकार पूरे प्रदेश में जातियों की गणना और आर्थिक सर्वेक्षण का काम करवा रही थी। पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधिश वी चन्द्रन की खंडपीठ ने कहा कि तत्काल प्रभाव से जातिगत जनगणना पर रोक लगाई जा रही है। इसके साथ ही अभी तक जो भी डाटा इकट्ठा किया गया है, उस डाटा को भी सुरक्षित रखने का आदेश दिया है। अब इस मामले पर 3 जुलाई को अगली सुनवाई होगी। इस दौरान तीन जुलाई को डिटेल में सुनवाई होगी। हालांकि, अब 3 जुलाई को देखना होगा कि कोर्ट का निर्णय क्या आता है।
पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद बिहार में राजनीतिक पारा हाई हो गया है। BJP सहित पूरा विपक्ष सत्ता पक्ष पर जमकर आरोप लगा रहा है। बीजेपी नेता और नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा ने कहा कि वे जातिगत जनगणना के नाम पर राजनीतिक फायदा उठाना चाहते हैं। उनकी नीयत में खोट थी, इसलिए नीति विफल हो रही है।
वहीं, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने इसको लेकर कहा कि हम जातीय गणना के खिलाफ नही हैं । यदि मैं सहनी होता या कुशवाहा होता तो मेरी बात को तवज्जो दी जाती । बिहार में 33 साल से सामाजिक न्याय की सरकार है। सबसे पहले इन 33 सालों में दलित या अतिपिछड़ा परिवार के लिए कितना काम हुआ, उसकी गणना होना चाहिए।
इसी बीच तेजस्वी यादव ने कहा कि कोर्ट का निर्देष पढ़ने के बाद ही सरकार अपना अगला कदम उठाएगी। मगर ये जाति आधारित जनगणना नहीं था, बल्कि सर्वे था। जो सरकार का कोई पहला सर्वे नहीं था। हमारी सरकार ये सर्वे कराने के लिए प्रतिबद्ध है। ये जनता के हित में था और जनता की मांग थी।
वहीं, सूबे के मुखिया नीतीश कुमार ने कहा कि जाति आधारित जनगणना सब लोगों की राय से तय हुआ है। ये सबके हित के लिए हो रहा है, लेकिन मुझे समझ में नहीं आ रहा इसका विरोध क्यों हो रहा है। इसका मतलब लोगों को मौलिक चीज़ों की समझ नहीं है। ये पहले अंग्रेज़ों के जमाने से तो होता ही था, ये 1931 से बंद हुआ था।
उधर, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रवक्ता चन्दन सिंह ने कहा कि सरकार की जाति आधारित गणना में कई त्रुटि था। इसमें याचिकाकर्ता ने जो प्रश्न उठाया उसका जवाब सरकार नहीं दे पाई। जिसके बाद न्यायाधीश संतुष्ट नहीं और इस पर अंतरिम रोक लगा दी गई।
कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा ने कहा कि कोर्ट का फैसला सर्वोपरि है। उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना सिर्फ जाति जानने के लिए नहीं थी। इससे यह भी पता चलता की बिहार में जनसंख्या कितनी है। वहीं प्रत्येक घर में आय का स्रोत क्या है, इसकी भी जानकारी हो जाती जिससे सरकार उनकी ओर ज्यादा ध्यान देती।
उपेन्द्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा है की जातिगत गणना पर रोक के लिए नीतीश कुमार ज़िम्मेवार हैं। जिनकी सरकार ने कोर्ट में सही तरीक़े से पक्ष नहीं रखा, जिसकी वजह से रोक लगी है । सरकार को चाहिए की जल्द से जल्द ऊपरी अदालत में जाए ताकि जल्दी से जातिगत गणना हो सके ।
दरअसल पटना हाईकोर्ट में इस मामले पर एक याचिक दायर की गई थी। याचिका में कहा गया था कि जातीय जनगणना में जाति के साथ साथ उनके कामकाज और उनकी योग्यता का विवरण लिया जा रहा है। जो संवैधानिक रूप से गोपनीयता का हनन है। इसके साथ ही कहा गया था कि इस पूरे जनगणना में 500 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं, जो पैसों की बर्बादी है। हालांकि, बिहार सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही ने जनगणना को जन कल्याण से जुड़ा बताया था। महाधिवक्ता पीके शाही ने कोर्ट में कहा था कि बिहार विधानसभा और विधान परिषद से प्रस्ताव पारित होने के बाद जातीय गणना कराने का निर्णय लिया गया है। ये राज्य सरकार का नीतिगत निर्णय है। इसके लिए बजटीय प्रावधान किया गया है। इस गणना से सरकार को गरीबों के लिए नीतियां बनाने में आसानी होगी।
बता दें कि बिहार में जनवरी में जातीय जनगणना के काम की शुरूआत हुई थी। पहले चरण में लोगों के मकानों की गिनती कराई गई थी। वहीं, 15 अप्रैल से 15 मई तक दूसरे चरण का काम चल रहा था, जिसमें घर घर जाकर लोगों के जाति और उनके आर्थिक ब्यौरे की जानकारी ली जा रही थी।